बन के तेरा साया, हां, मैंने खुद को पाया। बन के तेरा साया, हां, मैंने खुद को पाया।
तुम्हारा आना ! यानी हँसी, ठहाके और रौनक़, न समय की मर्यादा, न पहर का होश, हर घड़ी कोई उत्सव किस... तुम्हारा आना ! यानी हँसी, ठहाके और रौनक़, न समय की मर्यादा, न पहर का होश, हर...
तुम आना, क्यूँकि तुम आना चाहते हो। तुम आना, क्यूँकि तुम आना चाहते हो।
सारी रात उसका ही ख्याल आया, सोचूं मगर के क्योंकर आया? सारी रात उसका ही ख्याल आया, सोचूं मगर के क्योंकर आया?
शब्द शरीर भर नहीं होते इनके अंदर से भाव निकलते हैं। शब्द शरीर भर नहीं होते इनके अंदर से भाव निकलते हैं।
जीवन की द्रुत मंझधार में, हिलोरें लेते उफनते ज्वार में, जीवन की द्रुत मंझधार में, हिलोरें लेते उफनते ज्वार में,